चार साहिबज़ादे: धर्म और साहस की अमर गाथा

भारतीय इतिहास में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जहाँ धर्म और सत्य की रक्षा के लिए वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए। सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के चार सुपुत्र — साहिबज़ादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, ज़ोरावर सिंह और फ़तेह सिंह — सामूहिक रूप से चार साहिबज़ादे कहलाते हैं। इनकी शहादत केवल सिख समुदाय ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

आनंदपुर साहिब का संघर्ष

1704 ईस्वी में आनंदपुर साहिब का किला मुग़ल सेना और पहाड़ी राजाओं ने घेर लिया। महीनों तक घेराबंदी रही, भोजन और पानी की कमी होने लगी। अंततः गुरु गोबिंद सिंह जी को किला खाली करना पड़ा।

  • सरसा नदी पर बिछड़ना: किला छोड़ते समय परिवार सरसा नदी पार कर रहा था। इसी दौरान गुरु परिवार अलग हो गया।
    • गुरु जी के साथ बड़े साहिबज़ादे अजीत सिंह और जुझार सिंह रहे।
    • माता गुजरी जी छोटे साहिबज़ादे ज़ोरावर सिंह और फ़तेह सिंह के साथ अलग हो गईं।

चमकौर का युद्ध

गुरु जी और उनके साथियों ने चमकौर के किले में शरण ली। यहाँ मुग़ल सेना ने घेराबंदी कर दी।

  • साहिबज़ादा अजीत सिंह (18 वर्ष): उन्होंने युद्धभूमि में अद्भुत वीरता दिखाई।
  • साहिबज़ादा जुझार सिंह (14 वर्ष): उन्होंने भी अपने बड़े भाई के साथ युद्ध करते हुए वीरगति पाई।
  • गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्वयं अपने पुत्रों को युद्ध के लिए भेजा और कहा कि धर्म की रक्षा सर्वोच्च है।

यह युद्ध सिख इतिहास में साहस और बलिदान का प्रतीक बन गया।

छोटे साहिबज़ादों की शहादत

माता गुजरी जी और छोटे साहिबज़ादों को गंगू नामक ब्राह्मण ने अपने घर में शरण दी। लेकिन उसने विश्वासघात कर उन्हें मुग़लों के हवाले कर दिया।

  • सरहिंद की कैद: ज़ोरावर सिंह (9 वर्ष) और फ़तेह सिंह (7 वर्ष) को नवाब वज़ीर खान के दरबार में पेश किया गया।
  • धर्म परिवर्तन का दबाव: बच्चों को इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया गया।
  • दृढ़ता और साहस: दोनों छोटे साहिबज़ादों ने दृढ़ता से इंकार किया और कहा कि वे अपने धर्म से कभी नहीं हटेंगे।
  • निर्दयी सज़ा: दोनों को दीवार में ज़िंदा चिनवा दिया गया। माता गुजरी जी भी कैद में ही प्राण त्याग गईं।

बलिदान सप्ताह और वीर बाल दिवस

  • 21 से 27 दिसंबर तक का समय बलिदान सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।
  • भारत सरकार ने 2022 में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस घोषित किया।
  • यह दिन बच्चों के साहस और बलिदान को याद करने के लिए समर्पित है।

शहादत का महत्व

  • धर्म की रक्षा: साहिबज़ादों ने दिखाया कि सत्य और धर्म के लिए जीवन बलिदान करना सर्वोच्च कर्तव्य है।
  • साहस की मिसाल: उनकी उम्र छोटी थी, परंतु उनका साहस असीम था।
  • आधुनिक संदेश: आज भी उनकी शहादत हमें याद दिलाती है कि अत्याचार के सामने झुकना नहीं चाहिए।

सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ

उस समय मुग़ल सत्ता धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाल रही थी। सिखों ने इस अत्याचार का विरोध किया। चार साहिबज़ादों की शहादत ने यह संदेश दिया कि धर्म और आत्मसम्मान की रक्षा किसी भी कीमत पर करनी चाहिए।

निष्कर्ष

चार साहिबज़ादों की शहादत केवल सिख इतिहास नहीं, बल्कि पूरे भारत की धरोहर है। उनका बलिदान आने वाली पीढ़ियों को धर्म, साहस और आत्मसम्मान की राह दिखाता रहेगा।