अरावली विवाद पर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का बयान – बोले- अरावली संरक्षित है, सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गलत प्रचार किया गया
अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा को लेकर लंबे समय से विवाद जारी है। यह पर्वत श्रृंखला न केवल भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला मानी जाती है, बल्कि उत्तर भारत के पर्यावरणीय संतुलन और जैव विविधता के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाल के दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार ने बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति देने के लिए अरावली की परिभाषा में बदलाव किया है। वहीं, केंद्र सरकार ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। इसी संदर्भ में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्थिति स्पष्ट की और कहा कि अरावली को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भ्रम का आरोप
भूपेंद्र यादव ने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला से जुड़ा एक फैसला दिया था, लेकिन इस फैसले को लेकर गलत तरीके से प्रचार किया गया। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोर्ट ने अपने आदेश में अरावली की सुरक्षा और विस्तार पर जोर दिया है। यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अरावली की पहाड़ियों को बचाने और बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में अरावली क्षेत्र को मजबूत करने के प्रयास किए गए हैं। दिल्ली के ग्रीन बेल्ट को सुरक्षित रखने के लिए भी सरकार ने कई योजनाएं लागू की हैं।
एनसीआर में खनन पर रोक
मंत्री ने साफ कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में खनन की अनुमति नहीं है। उन्होंने कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि फैसले में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि नई खनन लीज नहीं दी जाएगी। अरावली का जो कोर एरिया है, वहां खनन की अनुमति ही नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट के आदेश में “टॉप मीटर” का जो जिक्र है, वह केवल न्यूनतम स्तर की बात करता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खनन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
खनन की पात्रता केवल 0.19% क्षेत्र में
भूपेंद्र यादव ने आंकड़ों के साथ बताया कि अरावली पर्वतमाला का कुल क्षेत्रफल 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर है। इसमें से केवल 0.19% हिस्से में ही खनन की पात्रता हो सकती है। बाकी पूरा क्षेत्र संरक्षित और सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि यह तथ्य स्पष्ट करता है कि अरावली की सुरक्षा को लेकर सरकार गंभीर है और बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति देने का आरोप निराधार है।
अरावली का महत्व
अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है, जिसकी उम्र लगभग 3.2 अरब वर्ष मानी जाती है। यह श्रृंखला राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात तक फैली हुई है। अरावली न केवल भूगर्भीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह उत्तर भारत के जलवायु और पर्यावरणीय संतुलन में भी अहम भूमिका निभाती है। यह क्षेत्र भूजल पुनर्भरण, वनस्पति संरक्षण और जैव विविधता के लिए अत्यंत आवश्यक है। अरावली की पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर को रेगिस्तानीकरण से बचाती हैं और यहां की वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने में योगदान देती हैं।
राजनीतिक विवाद और सरकार का रुख
कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने अरावली की परिभाषा बदलकर खनन कंपनियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की है। विपक्ष का कहना है कि इससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान होगा और स्थानीय लोगों की आजीविका पर भी असर पड़ेगा। हालांकि, सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली की सुरक्षा को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता अटूट है और किसी भी तरह की छूट खनन कंपनियों को नहीं दी गई है।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम
सरकार ने अरावली क्षेत्र में वृक्षारोपण, ग्रीन बेल्ट विस्तार और अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। दिल्ली और हरियाणा में ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाए गए हैं। इसके अलावा, राजस्थान में भी अरावली क्षेत्र को संरक्षित रखने के लिए नीतियां बनाई गई हैं।








