बिजनौर के डीएम आवास पर कुर्की का आदेश: मुरादाबाद की लारा कोर्ट का फैसला
मुरादाबाद की लारा कोर्ट (न्यायालय भूमि अर्जन पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण) ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए बिजनौर के जिलाधिकारी (डीएम) के शासकीय आवास को कुर्क करने का निर्देश दिया है। यह आदेश भूमि अधिग्रहण मामले में मुआवजा राशि का भुगतान न किए जाने के कारण दिया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि चार वर्षों से डिक्री पारित होने के बावजूद पीड़ित भूमि स्वामी को मुआवजा नहीं दिया गया, जो न्यायिक प्रक्रिया और प्रशासनिक जिम्मेदारी की गंभीर अवहेलना है।
मामला कैसे शुरू हुआ
इस विवाद की जड़ 13 मार्च 2020 के उस निर्णय से जुड़ी है, जिसमें भूमि अधिग्रहण के तहत प्रभावित भूमि स्वामी को मुआवजा देने का आदेश पारित हुआ था। वादी उमेश ने अदालत में प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि बार-बार अनुरोध और तगादा करने के बावजूद जिला प्रशासन ने कोई धनराशि अदा नहीं की। वादी के अधिवक्ता ने यह भी कहा कि डीएम बिजनौर की ओर से अदालत में कोई आख्या प्रस्तुत नहीं की गई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासन ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
अदालत की कार्यवाही
वादी की ओर से यह मांग की गई कि डीएम बिजनौर के शासकीय आवास को कुर्क कराकर मुआवजा राशि दिलाई जाए। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि प्रशासन भुगतान करने में सक्षम होते हुए भी जानबूझकर टालमटोल कर रहा है। इस दौरान उच्चतम न्यायालय के राजामणि मामले का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि प्रत्येक निष्पादन वाद को छह माह के भीतर निस्तारित किया जाना चाहिए।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पहले ही सीपीसी की धारा 41(2) के तहत नोटिस जारी किया जा चुका है और आदेश 21 नियम 37 के तहत कार्यवाही भी पूरी हो चुकी है। इसके बावजूद भुगतान नहीं किया गया। अंततः अदालत ने आदेश 21 नियम 54 सीपीसी के तहत कलेक्टर बिजनौर के शासकीय आवास को कुर्क करने का आदेश दिया।
आदेश की शर्तें
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कुर्की के दौरान कलेक्टर बिजनौर अपने शासकीय आवास को किसी भी प्रकार से अंतरित नहीं करेंगे और न ही किसी आर्थिक लाभ के लिए उसका उपयोग करेंगे। हालांकि, आवास कुर्क रहने के बावजूद वह इसे अपनी आधिकारिक क्षमता के अनुसार आवास के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, आदेश 21 नियम 54 (1 क) सीपीसी के तहत कोर्ट ने डीएम बिजनौर को निर्देश दिया है कि वे नौ जनवरी 2026 को अदालत में उपस्थित होकर कुर्कशुदा संपत्ति के विक्रय की उद्घोषणा की शर्तों को तय करें।
प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल
यह मामला प्रशासनिक लापरवाही का बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है। चार वर्षों तक मुआवजा राशि का भुगतान न करना न केवल भूमि स्वामी के अधिकारों का हनन है, बल्कि न्यायिक आदेशों की अवमानना भी है। अदालत ने इस लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए कठोर कदम उठाया है।
व्यापक असर
इस आदेश का असर केवल बिजनौर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे प्रदेश में भूमि अधिग्रहण मामलों में प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर एक मिसाल बनेगा। अक्सर देखा जाता है कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में प्रभावित किसानों और भूमि स्वामियों को वर्षों तक मुआवजा नहीं मिल पाता। ऐसे में अदालत का यह आदेश प्रशासन को चेतावनी देता है कि न्यायिक आदेशों की अनदेखी करने पर कठोर कार्रवाई हो सकती है।








